Thursday, April 27, 2017

केरल डायरीज़ - ३ : मसालों की मादक गंध और चाय की चुस्कियों में डूबा वो शहर


वालर वॉटरफॉल

कोच्ची से क़रीब तीन घंटे के सफ़र के बाद पहाड़ी रास्ता शुरू होता है... जैसे जैसे हम ऊपर चढ़ते जाते हैं मौसम लुभावना होता जाता है... हवा में एक मादक सी गंध घुलती जाती है... हरियाली की... मसालों की... नारियल और केले के पेड़ों की जगह अब यहाँ पहाड़ पर उगने वाले तमाम जंगली पेड़ों ने ले ली है... रास्ते में यूँ तो बहुत से छोटे बड़े झरने हैं पर क्यूंकि पिछले साल बारिश काफ़ी कम हुई थी यहाँ और अभी गर्मी का मौसम था तो अधिकतर झरने सूखे हुए थे... सबसे पहले हमें वालर वॉटरफॉल देखने को मिला... पानी की कमी से वो भी अपने भव्य रूप में तो नहीं था फ़िर भी थोड़ा बहुत पानी था उसमें, जो दूर से देखने पर दूध की पतली पतली धाराओं जैसा लग रहा था.. थोड़ा आगे बढ़ने पर सात स्टेप्स में गिरने वाला विशाल सीढ़ीनुमा चीयाप्परा वॉटरफॉल मिला जो की पूरी तरह से सूखा हुआ था... पानी की एक बूँद नहीं थी उसमें... यूँ झरनों के आसपास अपनी आजीविका चलाने के लिए वहाँ के लोग तमाम छोटी-बड़ी खाने पीने की दुकाने खोल लेते हैं पर इस समय अधिकतर बंद थी... मॉनसून में शायद एक बार फ़िर रौनक हो यहाँ...

मुन्नार स्पाइस गार्डन









केरल अपने जिन मसालों की वजह से "स्पाइस कैपिटल ऑफ़ दा वर्ल्ड" कहलाता है वो सारे के सारे मसाले दरअसल यहाँ मुन्नार के आसपास ही उगते हैं और यहीं से कोचीन और वहाँ से पूरी दुनिया में भेजे जाते हैं... मुन्नार जाते समय आपको रास्ते में बहुत से स्पाइस गार्डन्स देखने को मिलते हैं... यहाँ आपको उन सारे मसालों और औषधियों के पेड़ देखने को मिल जाते हैं जो इन पहाड़ियों पर उगते हैं... ऐसे ही एक स्पाइस गार्डन देखने हम भी रुके... १०० रुपये प्रति व्यक्ति का एंट्री टिकट था जिसमें गाइड की फीस भी शामिल थी... ख़ास बात ये की आपको आपकी भाषा का ही गाइड दिया जाता है जो विस्तार से आपको एक एक पौधे और उसके औषधीय गुणों के बारे में बताता चलता है... 

इलायची
रोज़मर्रा के खाने में इस्तेमाल होने वाले तमाम मसाले जैसे हरी इलायची, काली मिर्च, तेजपत्र, लौंग, दालचीनी, जावित्री, जायफल आदि को पेड़ों पर लगे हुए देखना और उन्हें खा के या छू के महसूस करना एक अलग ही अनुभव था...बहुत कुछ नया जानने को मिला यहाँ... जैसे की दालचीनी और तेजपत्र एक ही पेड़ से मिलते हैं... दालचीनी या सिन्नमन पेड़ की छाल होती है और तेजपत्र उसी पेड़ के पत्ते.. इसी तरह जावित्री यानी की मेस और जायफल यानी की नटमेग भी एक ही पेड़ के फल से मिलता है... गोल हरा सा अमरुद के आकार का फल.. जिसे तोड़ने पर उसके अन्दर एक नट यानी की जायफल निकलता है.. ये नट नारंगी रंग के रेशों से ढका रहता है जिसे जावित्री कहते हैं... ठीक इसी तरह हरी इलायची यानी की कार्डमम के बारे में ये पता चला की वो पेड़ की ऐरिअल रूट्स पर निकलती है... और बहुत धीमी गति से बढती है... जितनी बड़ी इलायची हमें मार्केट में मिलती है उतना बड़ा होने में इलायची को तकरीबन ३ से ४ महीने का समय लग जाता है... 

जायफल









इन तमाम मसालों में साथ साथ हमने बहुत से मेडिसिनल प्लांट्स भी देखे... ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने से लेकर आर्थराइटिस के दर्द को दूर करने तक... हार्ट प्रॉब्लम से ले कर हेयर प्रॉब्लम तक हर चीज़ की दवा मौजूद थी इस गार्डन में.. और तो और यहाँ हमने कॉफ़ी और कोको यानी की चॉकलेट के पेड़ भी देखे.. बहुत ही अनूठा अनुभव था वो... अब चूँकि थोड़ा बहुत गार्डनिंग और पेड़ पौधों का शौक हमें भी है तो मन वहाँ जा कर मानो किसी छोटे बच्चे सा ख़ुश हो गया जिसे अपना प्रिय खिलौना मिल गया हो :) तकरीबन एक डेढ़ घंटे गार्डन में घूमने के बाद हमने वहाँ की शॉप से बहुत से मसाले वगैरा लिये और आगे चल पड़े...

कोको / चॉकलेट 
कॉफ़ी 
थोड़ा और आगे बढे तो एक ख़ूबसूरत से व्यू पॉइंट पे एक रेस्टोरेंट बना था... चारों तरफ़ हरी भरी पहाड़ियों से घिरा... थोड़ी देर वहाँ रुक कर थकान उतारी गयी... साथ में मसाला चाय पी गयी जो की वहाँ के पारम्परिक स्टील के छोटे से ग्लास और कटोरी में सर्व करी गयी थी... चाय की चुस्कियों के साथ ख़ूबसूरत वादियों के नज़ारे और ठंडी हवा ने एक नयी स्फूर्ति भर दी थी... आगे बढ़े तो सड़क के दोनों ओर चाय के हरे भरे बागान नज़र आने लगे... जिसका मतलब था कि अब हम मुन्नार के काफी करीब पहुँच चुके थे... अपने इन्हीं ख़ूबसूरत चाय के बागानों के लिए मुन्नार विश्वविख्यात है... इतने परफेक्टली ट्रिम्ड गोया किसी ने एक एक टुकड़ा तराश के सजाया हो वहाँ... सच में प्रकृति बड़ी ही दिलफ़रेब शय है...


मुन्नार पहुँचते तक ४ बज गए थे... थोड़ी देर होटल में रुक कर हम वहाँ का मार्केट घूमने निकल पड़े जो की पास ही था... छोटे से चौक के आसपास मानो एक पूरा कुनबा बसा था छोटी बड़ी दुकानों और रेस्टोरेंट्स का... सड़क के किनारे बहुत से फूलवाले डलिया में रख कर जैस्मिन और क्रॉसैन्ड्रा के फूलों की वेणियाँ बेच रहे थे... सामने एक बड़ा सा सब्ज़ी और फलों का मार्केट था...  कॉफ़ी शॉप से लेकर इलेक्ट्रॉनिक सामान सब एक ही जगह उपलब्ध.. एक मज़ेदार बात ये की वहाँ चॉकलेट किलो के भाव बिक रही थी हर दूसरी दूकान में... दरअसल मुन्नार में होममेड चॉकलेट बहुतयात में मिलती है जिसे यहाँ आने वाले टूरिस्ट सुवनिअर के तौर पर ले जाते हैं... हाँ खाने में बेहद स्वादिष्ट होती है और बहुत सी वेरायटीज़ में मिलती है... साथ ही वहाँ होममेड सोप भी बहुत मिल रहा था जिसे लोग सुवनिअर की तरह ख़रीद रहे थे... बड़ी सारी मनमोहक खुश्बुओं में... हमें सबसे ज़्यादा उसकी पैकिंग ने अट्रैक्ट किया... उसके कवर सुपारी के पत्तों से बनाये गए थे...  मार्केट घूम कर डिनर करते हुए वापस आये तो मौसम बेहद ठंडा हो गया था... थकन आँखों पर तारी थी पर मन उर्जा से भरा हुआ... 

आज का दिन बहुत कुछ नया एक्स्प्लोर करने का मौका दे कर गया... और यहाँ की मीठी चॉकलेट्स की तरह दिल में ढेरों मीठी यादों को संजो गया हमेशा के लिये... मुन्नार की फ़िज़ाओं में एक अजब सा नशा है... एक पवित्रता भी है... दिव्यता भी... शान्ति भी और सुकून भी... और यदि आप भी हमारी ही तरह प्रकृति प्रेमी हैं तो मुन्नार आ कर आप भी पहली नज़र के प्यार वाली थ्योरी पर भरोसा करने लगेंगे...!



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