Monday, August 18, 2014

चेसिस की तारीख अट्ठारह अगस्त उन्नीस सौ चौंतीस है !!!



आज ये चेसिस अस्सी बरस की हो गयी है... रूह अब भी ताज़ा है... दिल बच्चे सा मासूम... और लफ्ज़ जवां...!

कितना कुछ लिख चुकी हूँ तुम पर... कितनी ही बार... तुम्हारे बारे में बात करते हुए जाने कितने अनजान लोग दोस्त बने... वजह सिर्फ़ एक... तुम्हारे लिये बेपनाह प्यार और इज्ज़त... तुम्हारे बारे में बातें करना.. दोस्तों से तुम्हारी पोएट्री डिसकस करना... हमारा फेवरेट शगल बन गया है...

तुम्हें पढ़ना... तुम्हारे बारे में पढ़ना... तुम्हारे बारे में दुनिया जहान के रेडियो और टीवी इंटरव्यूज़ ढूँढ ढूँढ के सुनना देखना... ये आदत अब फितूर और जूनून की हद से आगे बढ़ कर शायद कहीं परस्तिश की देहरी तक पहुँच गयी है... जाने अनजाने तुम एक दोस्त... एक मेंटोर... बनते जा रहे हो... कितनी ही बार ज़िंदगी के फलसफों को तुम्हारी नज़्मों में तलाशा है... कितनी ही बार मेरे दर्द को तुम्हारे गीतों में पनाह मिली है... कभी किसी बड़े बुज़ुर्ग की तरह सिर सहला के तुम्हारी नज़्में रिश्तों के मायने समझा गयी हैं... कभी खलाओं में बिखरे हज़ारों करोड़ों सय्यारों को देखने का नया नज़रिया दे गयी हैं... कभी उँगली पकड़ के मेले घुमा लाती है... तुम्हारी नज़्में भी तुम्हारी तरह ही वर्सेटाइल हैं...

कभी एक मोटर गैराज में काम करते हुए तुम रंगों से खेलते थे... बिमल दा तुम्हारी उँगली पकड़ के ले आये वहाँ से तब से तुम लफ़्ज़ों से खेल रहे हो... तुम्हारे अन्दर छुपा वो आर्टिस्ट अब भी वही है.. एक्सप्रेशन का मीडियम बदल गया बस... और तुम तो वैसे भी मल्टी फैसिटेड हो... कभी एक शायर... कभी कहानीकार... कभी स्क्रीन प्ले लिखते हो कभी फ़िल्में डायरेक्ट करते हो... हर फन में माहिर... तुम्हारी आवाज़ उन चंद आवाजों में से हैं जिनसे हम बेहद मुत्तासिर हैं... जो सीधे रूह तक पहुँचती है... तुम्हारे लफ़्ज़ों की तरह... आज के दिन ज़्यादा कुछ नहीं सूझ रहा है कहने को... बस इतना ही की ये चेसिस हमेशा यूँ ही चुस्त दुरुस्त रहे... जन्मदिन मुबाराक़ को गुलज़ार साब !

जाते जाते तुम्हारे चाहने वालों के लिये तुम्हारा एक इंटरव्यू छोड़े जा रही हूँ यहाँ...



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