Friday, June 27, 2014

पंचम... फिर नहीं आते...!


पंचम... रबीन्द्र संगीत की भूमि कोल्कता में जन्मा वो बच्चा जो रोता भी था तो पंचम सुर लगते थे... जब उसकी उम्र के दूसरे बच्चे खेल कूद में मसरूफ़ होते तो वो उस्ताद अली अकबर खान से सरोद की तालीम ले रहा होता... उसके पसंदीदा खिलौने हरमोनिका और ड्रम्स हुआ करते थे... महज़ नौ साल की उम्र में उसने अपना पहला गाना कंपोज़ किया... बड़ा हो कर ये बच्चा हिन्दुस्तानी फ़िल्मी संगीत का मशहूर संगीतकार बना... आर डी बर्मन... आज उनकी ७५वीं जयंती है...!

संगीत, पंचम के लिए हमेशा एक पैशन की तरह रहा.. और संगीत में नए नए एक्सपेरिमेंट करना उनका जूनून... हर वक़्त कुछ नया कुछ अलग कुछ लीक से हटकर करने की चाह... हर गाने के पीछे एक अलग और अनोखी कहानी... खुश्बू फिल्म का वो गाना याद है आपको " ओ मांझी रे..." उस गाने में हवा का साउंड इफ़ेक्ट लाने के लिए उन्होंने जानते हैं क्या किया ? कुछ सोडा बॉटल्स में थोड़ा थोड़ा पानी भर के उसमें फूँक कर ये इफ़ेक्ट क्रिएट करा.. ऑर्केस्ट्रा के साथ ये आवाज़ भी इस्तेमाल हुई गाने में...

फ़िल्म "बहारों के सपने" में पहली बार उन्होंने ट्विन ट्रैक इफेक्ट का इस्तेमाल किया "क्या जानू सजन" गाने में.. और उसके बाद इजाज़त फिल्म के लिए "कतरा कतरा मिलती है" गाने में, जिसे ज़बरदस्त सफलता मिली...

वो ब्राज़ीलियन बोस्सा नोवा रिदम को पहली बार हिंदी फिल्म म्युज़िक में ले कर आये... पति पत्नी फिल्म के गाने "मार डालेगा दर्द-ए-जिगर" में, जिसे आशा जी ने गाया...

फिल्म किताब के गाने "मास्टर जी की आ गयी चिट्ठी" के लिए पंचम क्लासरूम से डेस्क उठा कर स्टूडियो में ही ले आये और उसे परकशन की तरह इस्तेमाल किया...

इसी तरह "चुरा लिया है तुमने जो दिल को" गाने में उन्होंने एक और एक्सपेरिमेंट किया... इस गाने में उन्होंने चम्मच को गिलास पर बजा कर उसकी आवाज़ रिकॉर्ड करी थी...

एक बार तो पंचम पूरी रात जाग कर छत पे बारिश और पानी की बूंदों की आवाज़ रिकॉर्ड करते रहे.. जब तक उन्हें मन चाहा इफ़ेक्ट नहीं मिला.. फिर उसे अपने गाने में इस्तेमाल करा...

ऐसी न जाने कितनी ही कहानियाँ हैं उनके बनाये हर गाने के पीछे... संगीत के लिए ये जुनून बहुत कम लोगों में होता है...

जाने कितने ही गानों का म्युज़िक तो उन्होंने सपने में कंपोज़ करा... वो पश्चिमी संगीत से बहुत इंस्पायर्ड थे... यही वजह थी की अकसर उनपर गीतों की धुन कॉपी करने का इलज़ाम लगा... पर इस सब से बिना प्रभावित हुए वो संगीत की दुनिया में अपना काम करते रहे और अपनी छाप छोड़ते रहे...

चाहे वो मस्ती भरी धुन हो या जज़्बातों में डूबा हुआ कोई गीत, पंचम क्लासेज़ और मासेज़ दोनों के प्रिय थे और हमेशा रहेंगे... पंचम हमेशा मस्ती के मूड में रहते... गाना रिकॉर्ड करते करते नाचने लगते तो कभी सिंगर्स को तंग करते रहते... सजीदा गीतों की रिकॉर्डिंग करते हुए भी उनके प्रैंक्स कम नहीं होते थे.. किशोर और पंचम इस मामले में बिलकुल एक से थे... मेड फॉर ईच अदर टाइप... दोनों की दोस्ती भी कुछ ऐसी ही थी...

पंचम के बारे में बात करते हुए आशा जी एक इंटरव्यू में बताती हैं कि पंचम संगीत को ही जीते थे, खाते थे, सोते थे... भले ही वो ज़मीन पर सो जायें पर उनका रिकॉर्डिंग सिस्टम और स्टीरिओ हमेशा बिलकुल सही से रखा होना चाहिए था.. अगर उनको उनके म्युज़िक के साथ छोड़ दिया जाये बिना परेशान करे हुए तो फिर उनसे ज़्यादा नम्र इंसान और पति कोई हो ही नहीं सकता...

पंचम की बात हो और गुलज़ार साब के साथ उनकी दोस्ती का ज़िक्र न आये ऐसा हो ही नहीं सकता... दोनों ने साथ मिल कर ढेरों ऐसे गाने बनाये जो आज तक लोगों के दिलों में बसते हैं... "मुसाफिर हूँ यारों.." उनका पहला गाना था साथ में.. गाने की धुन तैयार कर पंचम रात के एक बजे गुलज़ार के पास आये और जगा कर बोले.. नीचे गाड़ी में चलो तुम्हें गाना सुनाता हूँ... और फिर रात भर दोनों मुंबई की सड़कों पर घूमते रहे और कैसेट पर ये गाना सुनते रहे...

पंचम के जाने के बाद गुलज़ार ने उनकी याद में एक पूरा एल्बम निकाला उनके गानों का अपनी कमेन्ट्री के साथ... पंचम को याद करते हुए गुलज़ार कहते हैं -  

वो प्यास नहीं थी जब तुम म्युज़िक उड़ेल रहे थे ज़िन्दगी में, 
और हम सब ओक बढ़ा के माँग रहे थे तुमसे, 
प्यास अब लगी है जब क़तरा क़तरा तुम्हारी आवाज़ का जमा कर रहा हूँ
क्या तुम्हें पता था पंचम की तुम चुप हो जाओगे और मैं तुम्हारी आवाज़ ढूँढता फिरूँगा...!

 

Friday, June 20, 2014

ख़ानाबदोश !



यात्रा करना कुछ कुछ ध्यान लगाने जैसा है... मेडीटेट करने जैसा... एक अनंत में ख़ुद को खो देने जैसा... एक असीम में ख़ुद को पा लेने जैसा... नयी जगह नये लोग नया वातावरण.. हर बार एक नया जन्म लेने जैसा... कितना रुच रुच के उस उपरवाले ने ये कायनात बनायी है... पूरी शिद्दत से... कहीं पेड़ कहीं पहाड़... झरने... जंगल... सागर... कहीं रेगिस्तान कहीं खेत खलिहान... ये प्रकृति कितनी ख़ूबसूरत है... जैसे हर कण में उसने अपना एक अंश छोड़ दिया है... और हम इंसानों के अन्दर एक यायावर की आत्मा... 

ये यायावरी ये ख़ानाबदोशी शायद थोड़ी ज़्यादा ही दे दी है उस उपरवाले ने हमें... पिछले जन्म की किसी बंजारन की आत्मा... थोड़ा सा समय बीतता है और लगता है बस अब कुछ दिनों के लिए कहीं घूम आना चाहिए... किसी नए शहर किसी नए कस्बे... और इस बार तो हद ही हो गयी... ढाई साल होने आ रहा है और हम कहीं जा नहीं पा रहे हैं... मन हर शाम एक अजीब सी बेचैनी से भर जाता है.. जैसे उसे भी सांस लेने को एक नयी खुली जगह चाहिए... पिछले साल फूलों की घाटी जाने का प्लान बनाया था... टूर ऑपरेटर को एडवांस पैसे भी जमा कर दिए, पर उत्तराखंड में पिछले साल आयी भयानक प्रलय से सारे टूर कैंसिल हो गए.. इस साल भी कोई ख़ास उम्मीद नहीं दिखती... तो आजकल किसी नयी डेस्टिनेशन की तलाश है... कहीं किसी दूसरे पहाड़ पर...

पहाड़ों में तो जैसे हमारी आत्मा बसती है... आज जब लोग सेविंग और रिटायरमेंट प्लान्स के बारे में सोचते हैं तो हम दूर किसी पहाड़ी पर एक छोटा सा कॉटेज लेने के बारे में सोचते हैं... वही किसी गाँव के किसी स्कूल में पहाड़ी बच्चों को पढ़ाते हुए तमाम उम्र गुज़र जाये तो क्या ही ख़ूब हो... उफ़ ये ख्वाहिशें... के हर ख्वाहिश पे दम निकले...

वैसे कितना कुछ है ना इस दुनिया में देखने को... एक्स्प्लोर करने को... छोटी छोटी जगहें... शहर... टापू... द्वीप... हिन्दुस्तान की बात करें तो काफ़ी हद तक हमने घूमा है... ज़्यादातर पहाड़... और बहुत कुछ है जो अभी देखना बाकी है... मुनार जाना है... केरेला देखना है... कच्छ का रण... कश्मीर... राजस्थान... गुजरात... दार्जलिंग... पेंगॉन्ग सो लेक... डलहौज़ी... चम्बा.. खजियार... लैंड्सडाउन... जिम कॉर्बेट... और भी न जाने क्या क्या... हमें उन सब जगहों पर जाना है... उन्हें महसूस करना है... आत्मसात करना है... कुछ पलों के लिये उन्हीं का हिस्सा हो जाना है...

ऐल्प्स की पहाड़ियाँ... सफ़ेद नीले घरों से जगमगाता मिकोनोस शहर... अमेज़न के घने जंगल... मालदीव्स का झिलमिलता नीला समुद्र... पानी में डूबता तैरता वेनिस... फ्रेंच वाइन यार्ड्स... ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ... लॉच नदी के किनारों पे बसा ख़ूबसूरत कोलमर शहर... फिलिपींस का डेडॉन आइलैंड... कैलाश मानसरोवर में बिखरे शिव...

सोचने बैठो तो एक के बाद एक नाम जुड़ते ही जाते हैं इस लिस्ट में... देखने को कितना कुछ है... और ज़िन्दगी कितनी छोटी... हर एक लम्हें में कितना कुछ जीना है... हर गुज़रते पल के साथ एक नया जन्म लेना है...!
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