Thursday, February 3, 2011

तिरसठवाँ चाँद !!


गहरे सिलेटी आसमां पर
चाँदनी की हल्की पीली शॉल ओढ़े
एक ज़र्द सा चाँद आया था आज

बहुत कमज़ोर दिख रहा था
कुछ उदास, थोड़ा ग़मगीन
शायद अकेलेपन का दर्द था

इतने तारे तो होते हैं
हर पल उसके आस-पास
फिर क्यूँ इतना तन्हाँ था

सारी दुनिया थकती नहीं
उसकी सुन्दरता की उपमाएं देते
उसे तो ख़ुश होना चाहिये, पर नहीं था

उसे यूँ देख कर तकलीफ़ हुई
पहली बार पूरनमासी का चाँद
मुस्कान की जगह उदासी दे गया

शायद तन्हाई का दर्द समझती हूँ
जी चाहा हाथ बढ़ा के थाम लूँ उसे
भर के आग़ोश में चूम लूँ उदास आँखें

ये ख़ुदा भी ना अब पहले सा नहीं रहा
इन्सानी फ़ितरत सीख गया है
पक्षपात करने लगा है

ज्यूपिटर पसंद है तो
उसे तिरसठ चाँद दे दिये
और पृथ्वी को बस एक

वो तिरसठवाँ चाँद जो वहाँ अकेला है
इस धरती को दे देता
तो हमारा चाँद यूँ तन्हा ना होता आज...

-- ऋचा

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