Friday, May 22, 2009

शतरंज


aaj aapke saath kuchh alag sa share karne ja rahi hun, ummed karti hun pasand aayega.
shatranj ke khel se to aap sabhi waakif honge. kis tarah chausath khaano ki bisaat par aadhi-tirchhi chaalen chalte hue ek raja aur uski sena jeet jaati hai aur ek ke hisse me sirf maat aati hai.
aaiye shatranj ke is khel ko ek shayar ke nazariye se dekhte hain. gulzar sa'ab ne bahot hi khoobsoorti se ise shabdon me piroya hai. aaj ye shatranj ki baazi lagi hui hai bhagwaan aur ek aam insaan ke beech.

पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाज़ी देखी मैंने

काले घर में सूरज रख के तुमने शायद सोचा था
मेरे सब मोहरे पिट जायेंगे
मैंने इक चिराग जला कर
अपना रास्ता खोल लिया

तुमने एक समंदर हाथ में लेकर मुझ पर ढेल दिया
मैंने नूँह की कश्ती उसके ऊपर रख दी
काल चला तुमने, और मेरी जानिब देखा
मैंने काल को तोड़ के लम्हा लम्हा जीना सीख लिया

मेरी खुदी को तुमने चंद चमत्कारों से मारना चाहा
मेरे एक प्यादे ने तेरा चाँद का मोहरा मार लिया
मौत की शह देकर तुमने समझा था, अब तो मात हुई
मैंने जिस्म का खोल उतार कर सौंप दिया और रूह बचा ली

पूरे का पूरा आकाश घुमा कर अब तुम देखो बाज़ी ...

-- गुलज़ार



isi shatranj ke khel pe javed akhtar ji ka ek mukhtalif nazariya hai. zindagi ki is bisaat pe hum sab ek mohre ki tarah hain, jo saari zindagi chaalen chalte hue aage badhte rehte hain, har roz ek jang ladte rehte hain, khud apne aap se aur apne apno se, aur arjun ke teer ki tarah humara sirf ek lakshya hota hai, machhli ki aankh ko bhednaa. to aaiye roobaroo hote hain ek mohre ke safar se aur dekhte hain is zindagi ki baazi me us adna se mohre ki jeet hoti hai ki haar...



जब वो कम उम्र ही था
उसने ये जान लिया था
कि अगर जीना है
बड़ी चालाकी से जीना होगा
आँख कि आखिरी हद तक है बिसात-ऐ-हस्ती
और वो एक मामूली मोहरा है
एक एक खाना बहुत सोच के चलना होगा
बाज़ी आसान नहीं थी उसकी
दूर तक चारों तरफ़ फ़ैले थे
मोहरे
जल्लाद
निहायत सफ़्फ़ाक
सख्त
बेरहम
बहुत ही चालाक
अपने हिस्से में लिये पूरी बिसात
उसके हिस्से में फ़क़त मात लिये
वो जिधर जाता था उसे मिलता था
हर नया खाना नई घात लिये
वो मगर बचता रहा
चलता रहा
एक घर
दूसरा घर
तीसरा घर
पास आया कभी औरों के
कभी दूर हुआ
वो मगर बचता रहा
चलता रहा
गो कि मामूली सा मोहरा था मगर जीत गया
यूँ वो एक रोज़ बड़ा मोहरा बना
अब वो महफूज़ है एक खाने में
इतना महफूज़ कि दुश्मन तो अलग
दोस्त भी पास आ नहीं सकते

उसके एक हाथ में है जीत उसकी
दूसरे में तन्हाई है

-- जावेद अख्तर

1 comment:

  1. Thanks Richa for presenting the creation of two legends together. I like Gulzar's most. Have a great weekend :)

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दिल की गिरह खोल दो... चुप ना बैठो...

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