Sunday, April 12, 2009

बूँद


kaafi saal pehle zee tv par ek program aata tha rishtey, uske ek episode "boond" me ye lines suni thi... ummed hai ki aapko bhi utni hi pasand aayengi, jitni humen pasand hain...

सिर्फ़ साया नहीं वजूद मेरा
मेरी अपनी भी एक हस्ती है
कोई मुझको मेरी तरह समझे
रूह इस बात को तरसती है
बूँद की अपनी प्यास होती है
प्यास इक लब तलाश करती है
ज़िन्दगी आती जाती साँसों में
कोई मतलब तलाश करती है

1 comment:

  1. ye boond to lajawab hain...... ek-ek shabd boond nahi sagar samaya hain inmey.... good work. Keep it up :-)

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दिल की गिरह खोल दो... चुप ना बैठो...

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